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अयोध्या से श्रीलंका तक जहां-जहां राम गए, वहां आज क्या:नेपाल में मणिमंडप, नासिक में सीता गुफा, श्रीलंका में रावण का शव

 

भास्कर एक्सक्लूसिव

अयोध्या से श्रीलंका तक जहां-जहां राम गए, वहां आज क्या:नेपाल में मणिमंडप, नासिक में सीता गुफा, श्रीलंका में रावण का शव

अयोध्या16 घंटे पहले

 

22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा है। राम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ, लेकिन ऐसी कई जगह हैं, जो राम कहानी में बेहद अहम हैं। दैनिक भास्कर की टीम भारत, नेपाल और श्रीलंका की ऐसी 10 जगहों पर पहुंची। यहां हमें न सिर्फ राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान के निशान मिले, बल्कि ऐसी कहानियां, कुंड और मंदिर मिले, जिनके बारे में शायद आपने कभी सुना ही न हो।

 

पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट…

 

अयोध्या...वो जगह जहां राम पैदा हुए, उनका बचपन बीता। इसी जगह से उन्हें 14 साल के वनवास पर जाना पड़ा। आखिर में गो-लोक जाने से पहले इसी नगरी के बीच से बहने वाली सरयू नदी में उन्होंने जल समाधि ले ली।

भगवान राम की जन्म की कहानियां अयोध्या के अखाड़ों, मठों और गलियों में बसी हैं। राम मंदिर के मुख्य पुजारी महाराज सत्येंद्र दास बताते हैं, ‘मनु और शतरूपा ने कठिन तपस्या की थी। इससे खुश होकर भगवान प्रकट हुए। उनके सामने दोनों ने वरदान मांगा-

दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउं सतिभाउ। चाहउं तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ॥

इसका अर्थ है - हे दानियों के शिरोमणि! हे कृपानिधान। हे नाथ...मैं अपने मन का सच्चा भाव कहता हूं कि मैं आपके समान पुत्र चाहता हूं। प्रभु से भला क्या छिपाना।

मनु की बात सुनकर भगवान खुश हुए, उन्होंने दोनों को वरदान दिया कि-

देखि प्रीति सुनि बचन अमोले। एवमस्तु करुनानिधि बोले। आपु सरिस खोजौं कहं जाई। नृप तव तनय होब मैं आई॥

इसका अर्थ है - ऐसा ही होगा…हे राजन्‌। मैं अपने समान (दूसरा) कहां जाकर खोजूं। इसलिए खुद ही आकर तुम्हारा पुत्र बनूंगा। इसके बाद सतयुग में मनु ने दशरथ और शतरूपा ने कौशल्या रूप में जन्म लिया। उनसे जो पुत्र हुआ, वह भगवान के समान था। नाम था- राम।

सत्येंद्र दास कहते हैं, ‘दशरथ की 3 रानियों से उन्हें राम समेत 4 पुत्र हुए। चारों अयोध्या में पले-बढ़े। जवान होने पर राम शिक्षा ग्रहण करने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम चले गए।

 

राम ने जहां ताड़का का वध किया था, वो इलाका आज बिहार के बक्सर जिले में माना जाता है। बक्सर में हमारी मुलाकात पंडित विद्याशंकर चौबे से हुई। विद्याशंकर चौबे बताते हैं, ‘त्रेता युग में बक्सर का नाम बामनाश्रम था। ये ऋषि-महर्षियों का गढ़ था। तपोभूमि होने के बावजूद यहां राक्षस ऋषियों को तंग कर रहे थे। यज्ञ कुंड में हड्डी, मांस के टुकड़े फेंक देते थे।

महर्षि विश्वामित्र ने महाराजा दशरथ को ये परेशानी बताई और राम-लक्ष्मण को अपने साथ बक्सर ले आए। राम ने यहां सबसे पहले ताड़का का वध किया। ताड़का का वध करने के लिए राम पर ब्राह्मणी हत्या का दोष लगा था। इसके पश्चाताप के लिए राम ने बक्सर के रामरेखा घाट पर गंगा स्नान किया। राम और लक्ष्मण ने सिर भी मुंडवाया था। इसके बाद उनसे ब्राह्मणी हत्या का दोष हटा था।

अहिल्या उद्धार
ताड़का वध के बाद राम ने पांच ऋषियों के आश्रम की यात्रा की थी। कहानी ये है कि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण को सीता स्वयंवर दिखाने जनकपुर ले जा रहे थे। राम सबसे पहले बिहार के दरभंगा जिले के अहियारी गांव पहुंचे।

बिहार राज्य धार्मिक न्यास समित, दरभंगा के सचिव हेमंत झा बताते हैं, ‘अहियारी गांव पहुंचने पर राम ने विश्वामित्र से पूछा कि यहां की जमीन पत्थर क्यों है? विश्वामित्र ने राम को बताया कि कई साल से यहां कोई आपका इंतजार कर रहा है। विश्वामित्र से अहिल्या की कहानी सुनते ही राम सीधे अहिल्या के आश्रम पहुंचे। उनके चरण स्पर्श से ही अहिल्या गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त हो गईं।’

महिला पंडित करती हैं पूजा
अहियारी गांव में अहिल्या माता का मंदिर है। इसकी खासियत है कि यहां महिला पंडित ही पूजा करती हैं। मंदिर की पंडित रेखा देवी मिश्रा बताती, ‘पहले मेरी सास यहां पूजा कराती थीं। उनकी उम्र 105 साल हो गई है, इसलिए मेरी बहू पंडित है। वो पति के साथ अयोध्या गई है। इसीलिए अगले कुछ महीनो के लिए मैं यहां की पंडित हूं।

 

अहियारी गांव में अहिल्या माता का मंदिर। इस मंदिर में महिलाएं ही पुजारी होती हैं। अभी रेखा देवी मिश्रा यहां पूजा करती हैं।

रेखा देवी मिश्रा बताती हैं, 'अहिल्या मां एक सुहागन थीं। सभी पुरुष उनके बेटे जैसे हैं, इसलिए वे उन्हें सिंदूर और बिंदी नहीं लगा सकते, इसलिए यहां महिलाएं ही पूजा करवाती हैं।'

मंदिर के पीछे अहिल्या कुंड है। इसके बारे में लोगों ने बताया कि यहां कुल 5 कुंड हैं। मान्यता है कि इनमें स्नान करने से रोग दूर हो जाते हैं।

 

अहियारी गांव में बना अहिल्या कुंड। लोग मानते हैं कि कुंड का रास्ता सीधे पाताल लोक की ओर जाता है।

दरभंगा महाराज ने अहिल्या मंदिर के सामने एक और पहेलियां मां का मंदिर बनवाया था। इसमें भगवान राम के साथ सीता, लक्ष्मण, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, हनुमान और गौतम ऋषि भी मौजूद हैं। यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है। हालांकि इस मंदिर की स्थिति अब बहुत अच्छी नहीं है।

अहिल्या मंदिर से करीब 3 किमी दूर गौतम ऋषि का आश्रम और गौतम कुंड है। जो आज के समय में सिद्ध पीठ महर्षि गौतम आश्रम के नाम से जाना जाता है। आश्रम के बाहर ही गौतम कुंड है। यहां हर साल महोत्सव के दौरान भीड़ उमड़ती है।

पंचकोशी यात्रा
राम सबसे पहले अहिल्या आश्रम गए, जहां उन्होंने पुआ-पकवान खाया था। इसके बाद वे नारद ऋषि के आश्रम नदवा गए। यहां खिचड़ी खाई। नदवा से निकलने के बाद भभुअर गांव में भार्गव ऋषि के आश्रम गए। वहां उन्होंने चूड़ा-दही खाया। यहां से वे उनाव गांव में उद्दालक ऋषि के आश्रम गए और सत्तू-मूली खाया था। सबसे आखिर में भगवान राम ने आनंदमय में विश्वामित्र स्थान पर लिट्टी-चोखा खाया था।

ये गांव पांच कोस या 15 किमी में फैले हैं। यहां हर साल पंचकोशी यात्रा की जाती है। 5 दिनों के दौरान भक्त वही खाना खाते हैं, जो भगवान राम ने खाया था। यहीं से राम सीता स्वयंवर के लिए नेपाल के जनकपुर गए थे।

 

नेपाल की राजधानी काठमांडू से 225 और अयोध्या से 518 किमी दूर जनकपुर है। इस शहर की सबसे मशहूर जगह है जानकी मंदिर। चंद कदमों की दूरी पर रंगभूमि है। जानकी मंदिर आने वाले लोग रंगभूमि भी जाते हैं। इसी जगह राम ने शिव धनुष तोड़ा था।

 

माना जाता है कि इसी जगह राम ने विवाह के पहले शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ा था। ये बड़ा मैदान है, जिसे खाली रखा गया है।

जनकपुर धाम के कार्यकारी महंत रामरोशन दास बताते हैं, ‘रंगभूमि को 12 बीघा के नाम से भी जाना जाता है। रामायण के मुताबिक, इस विशाल मैदान में ही तमाम राजा-महाराजा मां सीता से विवाह की इच्छा लेकर आए थे। मैदान से तीन किमी दूर मणिमंडप में स्वयंवर हुआ था।’

मणिमंडप
रंगभूमि के बाद हम मणिमंडप पहुंचे। चारों तरफ हरियाली से घिरे मणिमंडप के सामने एक तालाब है। मंदिर में राम-सीता के सुंदर मूर्ति है। मंदिर में महंत की भूमिका निभा रहीं राजकुमारी देवी कहती हैं, ‘रामायण से लेकर तमाम धार्मिक ग्रंथों में इसका जिक्र है कि राम-सीता की शादी का स्थान यही है। यहीं फेरे हुए थे। मंदिर के सामने जो तालाब है, वहीं पग फेरे की रस्म हुई थी।’

 

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